मुस्लिमों के रालोद से छिटकने की आशंका, जाट-दलित गठजोड़ पर बल

रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बदली रणनीति
-राजग में शामिल होने व अब वक्फ कानून संशोधन मामले में भाजपा का साथ देने पर बदली राजनीतिक स्थितियां
पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा लाये वक्फ कानून संशोधन बिल पर रालोद के सरकार का साथ देने के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीतिक परिस्थितियों में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है।
इन बदलती राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए रालोद मुखिया व केन्द्रीय मंत्री जयंत चौधरी को अपनी पार्टी की रणनीति में बदलाव लाने की जरुरत महसूस होने लगी है। इन बदली हुई परिस्थितियों में मुस्लिमों के रालोद से छिटके की आशंका को चलते अब जयंत चौधरी जाट-दलित गठजोड़ मजबूत करने की रणनीति अपना रहे है। इससे चलते वे अपनी पार्टी नेताओं को अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए इस दिशा में काम करने के निर्देशित कर चुके हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले रालोद का एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का घटक दल बनने के बाद ही रालोद के समर्थक मुस्लिम खुद को असहज महसूस कर रहा था। इससे पहले रालोद-सपा का गठबंधन होने से मुस्लिमों को एक धड़ा खुलकर रालोद के साथ था और रालोद की रणनीति जाट-मुस्लिम गठजोड़ के चलते काफी हद तक कामयाब रही थी। खासकर वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में रालोद-सपा गठबंधन रालोद के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ था।
पिछले वर्ष सपा का साथ छोड़कर केन्द्र में भाजपा से हाथ मिलाकर एनडीए सरकार का हिस्सा बन जाने से भी रालोद को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव व इसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन अब जबकि उत्तर प्रदेश में सभी प्रमुख दलों ने वर्ष 2027 में होने वाले चुनाव की तैयारी शुरु कर दी है, ऐसे में रालोद को भी उत्तर प्रदेश, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाये रखने के लिए नई राजनीति बनाकर काम करना शुरु कर दिया है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि वक्फ कानून में संशोधन के बाद रालोद के प्रति मुस्लिमों का रुझान कम होने का फीडबैक मिलने से रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने अपनी में रणनीति बदलाव किया। इसके चलते पार्टी का फोकस जो पहले जाट-मुस्लिम गठजोड़ पर था, उसे बदलकर अब जाट-दलित पर फोकस किया जाने लगा है। हालांकि जमीनी सतह पर काम करने वाले नेता समय-समय पर रालोद में मुस्लिमों की ज्वाइंनिग कराकर यह संदेश देते रहे हैं कि मुस्लिम आज भी पहले की तरह रालोद के साथ है, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि रालोद के वक्फ संशोधन कानून पर भाजपा के साथ देने से कुछ हद तक मुस्लिम समर्थकों में अप्रत्यक्ष नाराजगी हो सकती है। हालांकि एक दो मुस्लिम नेता ने ही रालोद पार्टी छोड़ी, जिससे पार्टी के जनाधार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सका।
इसके बावजूद रालोद मुखिया जयन्त चौधरी उप्र में आगे होने वाले विधान सभा चुनाव के मद्देनजर कोई चूक करने की मूड में नहीं हैं। वे बहुत ही गंभीरता व बारीकी से उत्तर प्रदेश की हर राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों व राजनीतिक हाल पर नजर रखे हुए हैं। जयंत चौधरी जानते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दो दर्जन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता की संख्या किसी भी चुनाव की दिशा बदलने की हैसियत रखती है। वैसे भी रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक जाट-मुस्लिम गठजोड़ को आधार पर ही अपने राजनीतिक वजूद को बरकरार रखे हुए है। लेनिक अब उसकी राजनीति है कि यदि मुस्लिम उससे कुछ प्रतिशत छिटक भी जाता है तो पार्टी उसकी भरपाई जाट-दलित समीकरण के दम पर कर सकतू है। इसलिए मुस्लिमों के साथ ही अब रालोद का जाट-दलित गठजोड़ को भी महत्व दिये जाने की रणनीति अपनाकर इस पर फोकस किया जा रहा है।